About Khowal Ji


पिताजी श्री ऍम सी खोवाल जी की जीवन यात्रा मेरी शब्दों के माध्यम से -एक प्रयास

हमारे परिवार में हमेसा से ही भक्ति भाव का प्रचार , ज्योतिषी ज्ञान विस्तार और पंचांग सेवा होती रही है I हमारे पड़दादा जी एवम दादा जी स्वर्गीय “जैराम दास खोवाल जी” के ज़माने से चली आ रही “गुरु भक्ति परंपरा” “ घराना श्री श्री 1008 “गुरु श्री मंगनानंद जी महाराज” के आदेस अनुसार गुरु घराने का कार्य भार को सेवा निमित आज्ञा का पालन मान पिता जी श्री ऍम सी खोवाल जी हमारे ग्वालियर घराने को आगे सँभालने लगे |

हमारे पिताजी श्री ऍम सी खोवाल जी का एक अच्छा खासा जीवन बहुत संघर्ष भरा रहा | जीवन के संघर्षो के सभी पहलु से पिता जी को भी गुजरना पड़ा |

सच्चाई और ईमानदारी के रस्ते पे आर्थिक तंगी के कारन पिता जी ने हमारी हिंदी फिल्मो की तरह ही अपने कठिन परिश्रम के साथ स्ट्रीट लाइट में बैठ कर पढना और कारखाने में काम कर के अपनी पढाई पूरी करी और इतनी कड़ी मेहनत के बाद SSC के एग्जाम क्लियर किये और भारत देश की सर्व्श्रेष्ट्र Ministory Of Deffence में UDC के पद पे कार्यभार संभाला , साथ ही साथ पिता जी ने आगे पढाई करके अपने आप को बड़े ही सम्मान पूर्वक Gazetted Officer Rank तक लाये , सन 2000 में गत पिछले 2 वर्ष पूर्व पिता जी अपने कार्यभार से सकुशल निवृति प्राप्त हुए , जो केवल श्री श्याम कृपा से ही संभव हो पाया | लेकिन हमारे पिता जी के जीवन का सबसे खूबसुरत और सुखद पल हमे हमारे बाबा श्याम का प्रेम स्वरुप मिलना ही रहा!

!! जिनको सिर्फ श्याम चाइये उनकी जीवन यात्रा कैसी होती है !!
!! निस्वार्थ प्रेम प्रभु के लिए समर्पित और उसके प्रेम के प्रति आनंद और अनुभव !!
!! प्रुभु प्रेम की लीला अपरम्पार !!
!! उद्देश्य केवल श्री श्याम मिलन !!

न बाबा श्याम हमारे कुल देवता न ही हमारे परिवार में पूजे जाने वाले देवता, श्याम बाबा ने पिता जी को कैसे अपनी सेवा के लिए चुना ...????

जहा तक मुझे याद है शुरू से ही पिताजी श्री श्याम संकीर्तनो में, श्री श्याम अखाड़ो में, “प्रभु प्रेम “ की भावना से बिलकुल निशुल्क ही जाने लगे थे और पिता जी के साथ हम भी जाने लगे , पिता जी बाबा को भजन सुनते थे और हम पिता जी की भजन डायरी को पकड़ के साथ-साथ कोरस करते थे , कभी डॉक्टर साहब का नंबर आता तो कभी मेरा |

“श्याम सेवाकियो ने बाबो, आपे ही संभाले से ”
“जमघट मेरे श्याम का”

उस समय पे बड़ा छोटा कोई सिंगर नहीं होता था , सिर्फ सभी श्याम भगत मिल के बाबा के भजन सुनाया करते थे कब रात निकल जाया करती थी ! बाबा श्याम, और उनको भजन सुनने वाले भगत और और पूर्ण रूप से लगता था श्री श्याम अखाड़ा - जमघट मेरे श्याम का !

पिता जी का साथ,लगभग सभी भजन प्रवाहको ,श्याम भगतो के साथ रहा फिर चाहे उसमे आदरणीय श्री नंदू जी हो या स्वयं श्री लक्खा सिंह जी हो और ताऊ जी स्वर्गीय श्री श्याम सुंदर शर्मा जी के साथ तोह पूरा भारत वर्ष में बाबा श्याम का प्रचार और उनके पिता जी स्वर्गीय डॉक्टर श्री जगदीश शर्मा जी के साथ महीनो -महीनो भर प्रभु प्रचार पूर्ण रूप में समर्पित थे , जो भी ले के आये श्री श्याम मंदिर डी ब्लाक नांगल राया जनक पूरी के निर्माण कार्य में लगाया..

कभी-कभी पिता जी बाबा श्याम के लिए ढोलक वादन की सेवा भी दिया करते थे | पिता जी हमेशा अपनी एक साइकिल से पता नहीं कहाँ- कहाँ बिना किसी मोसम की परवाह करे बिना , सिर्फ सच्चे श्याम गुणगान और प्रचार में जाने लगे छोटे -बड़े संकीर्तन , ढोलक वादन ,भजन गायन कैसा भी सेवा हो जो सिर्फ श्याम नाम से जुड़ी हो बस |

जब कभी पिता जी के साथ हम कीर्तनो में जाया करते थे अचानक से कोई भजन याद आता था, तो पिता जी बीच रोड पे साइकिल रोक के वो भजन लिखते, उस भजन की दिनांक, समय और जगह के साथ अंकित करते ,और स्वयं हाथो से उसी भजन पुस्तिका को लिखते और सिलते , सुंदर सी बाबा की तस्वीर की कटाई लगा के उसे खुद बाइंडिंग भी करते सुंदर से सुंदर बनाते जैसे कोई भगत अपने बाबा को निशान अर्पण करने से पहले सुंदर बनता है |

आज सोचते है तो बड़ा मुश्किल लगता है , कितने ही सालो की लगातार सेवा ,पूर्ण रात्रि के संकीर्तन के बाद दिन में अपनी सांसारिक यात्रा का जीवन यापन के लिए नौकरी | सोच के भी लगता है वो क्या समय था..??

जिनको सिर्फ श्याम ही श्याम दीखता था ! और श्याम के आगे अपना परिवार तक नही , हम सिर्फ अपनी मम्मी जी से सुना करते थे पिता जी आज कीर्तन में नेपाल गये है, सिलीगुड़ी गये है, न फ़ोन की सुविधा न कोई साधन , हम बीमार होते थे अकेले मम्मी जी ले जाया करती थी , आते ही अगले कीर्तन पे निकलना ...... सच में सिर्फ श्याम ने ही संभाला बीमारी में, बारिश में, अंधी में... आते ही अगले कीर्तन पे निकलना ...... बस यू कहना की जल्दी कपडे लगा दे कीर्तन में जाना है .....

माँ हमेशा ही चिंता में रहती , परदेश में रहते है अकेले और यह कीर्तनो में होते है हमेशा ....... यास नोक झोक में जाने कितनी ही बार आदरनिये ताऊ जी स्वर्गीय भ्रम्लिन श्री श्याम सुंदर शर्मा जी पालम वाले ने डाट तक खायी है .... मुझे अची तरह याद है .........

पिता जी कितने ही दिन हफ्तों महीनो कीर्तनो में रहते थे उनकी सरकारी जॉब और परिवार सिर्फ और सिर्फ बाबा श्याम ने ही संभाला है |

“उद्देश्य केवल श्री श्याम मिलन”
“श्याम की अपने भगत के साथ जीवन लीला और श्याम के हर पल साथ होने का एहसास”

पिता जी का समय हमेशा से ही श्याम अखाड़ो में ही रहा, कभी ढोलक बजाते बजाते पिता जी को दरबार में बाबा का आवेश में बुलाना हो, या भजन गाके बाबा को रिझाना हो.....
स्वयं श्री श्याम मंदिर खाटू श्याम जी मंदिर प्रस्न्गन मे संकीर्तन करने का सोभाग्य हो...
रेवाड़ी, पैसेंजर ट्रेन में जगह घेरकर गुरु जी महाराज के साथ ट्रेन में संकीर्तन करना हो...
रिंगस स्टेशन पे चेतक के इंतजार में कीर्तन....
प्रभु नाम लेने में कभी कोई शर्म नहीं.....
जहाँ श्याम मिलन नहीं वह मेरे पिता जी नहीं.....
कोई छल नहीं कोई दिखावा नहीं कोई मीडिया सहारा नहीं ....
बीते वर्षो में मैंने कीर्तन के वातावरण और उद्देश्य के बदलाव होने को ले के पिता जी को वहां से अलग होते हुए देखा है ,जो एक आर्टिस्ट कभी नहीं कर सकता | यह सिर्फ एक भगत के लिए संभव है |

खोवाल भजन सरोवर की प्रेरणा और सपना साकार

आज लगभग अपने जीवन के 50 वर्षो के बाद बाबा की कृपा से यह लगभग 800 भजनों का संग्रह जो बाबा श्याम के आशीर्वाद से आप सभी के सामने “खोवाल भजन सरोवर” के रूप में प्रकासित हुई है और बाबा ने अपने चरणों में सेवा में ली | यह एक लेखक के रूप में सपना कह सकते है परन्तु बाबा ने प्रेरणा दी और ससंभव करने हेतु माध्यम श्याम भगतो को बनाया है | जिसमे निसंधेह नाम बहुत ही विशेष भगतो का है परन्तु उनकी गोपनीयता ही उनकी सच्ची श्याम भक्ति की पहचान है और सभी भक्तो के सम्मान हेतु नाम लेने की ने अनुमति नही दी गयी मुझे | परन्तु में सभी के चरणों में सदर वंदन करता हु और कोटि कोटि धन्यवाद् करता हु |

पता ही नही कितनी ही लीला महाराज की उनके साथ हुई याद ही नहीं, परंतु कुछ जिनका में उल्लेख कर पाया उसका उद्देश्य “उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ केवल श्री श्याम मिलन ही रहा है” ....

और आज भी पिता जी अपने भजनों में और श्याम लीला में मगन रहते है, श्याम आनंद में रहते है | मेरे शब्दों में में चूक हो सकती है , ज्ञान के आवाभ से परन्तु श्याम कृपा और प्रभु भजन में नहीं | पिता जी की ही लिखी हुई दो शब्द :-

!! “खाटू वाले श्याम पे है पूरा विश्वास ,
चाहे देर भले हो जाये करता है पूरी आस” !! !!

प्रवीण खोवाल (मोनू भाई )
सुपुत्र श्री ऍम सी खोवाल जी